स्वयं से जुड़े ,ईश्वर से जुड़ने के लिये


कभी कभी विचारो की भीड़ आकर हमारे कदम रोक देती है।जीवन की छोटी छोटी उलझनो को हम सुलझाने मे सारा वक्त दे देते है।महत्वपूर्ण पीछे छूट जाता है दैनिक तत्कालीन कार्य सारा ध्यान खीच लेते है।तनाव का कारण काम नही बल्कि हमारी अपने आप से दुरी है। हमारे पास वक्त ही नही कि जान पाये भीतर क्या चल रहा है।
एक प्रयोग करके देखे इसी क्षण रुके, गहरी साँस ले , महसूस करने का प्रयास करें अन्तर्मन के संगीत मे कौन सी धुन सुनायी देती है। अन्दर से आप कैसा महसूस कर रहे हैं रो रहे है, हँस रहे है, शान्त है ,तनाव मे है, क्रोध मे है ,उदासीन है, निराश हैं, आशा से भरे है। अन्तर्मन क्या माँग कर रहा है? अन्तर्मन की बात एक बच्चे की बात की तरह ध्यान से सुनने का प्रयास करे।बस एक बार उसकी इच्छा पर ध्यान केन्द्रित करे। कईं बार तो वो बस रुकना चाहता है। आप वक्त निकलो और एक बार फुर्सत के क्षणो मे ही सही उसकी इच्छा पूरी करो और फिर बताओ कैसा महसूस होता है।
हो सकता है आप किसी से गुस्सा हो व आपका अंतर्मन उसी व्यक्ति से मिलने को कह रहा हो। आपका अन्तर्मन आपके मस्तिष्क के निर्देश को नही मानना चाहता। पर तर्कपूर्ण इस दुनिया मे उसकी एक नही चलती।
बार बार सुनने का प्रयास करे तो आपको सुनायी देगी अन्दर की आवाज जो सबसे अच्छी मार्गदर्शक है हमारी ,पर भय व चिन्ता के विचारो का निरन्तर प्रवाह हमे इस शान्त प्रज्ञा से दूर कर देता है।
हम मशीन बन गये है अपनी भावनाओ को अभिव्यक्त ना करना आधुनिक बुधिमत्ता है। भावनाओ का दमन अन्तर्मन का दमन है पर भावनाए आपके नियन्त्रण मे होनी चाहिये आप भावनाओ के नियन्त्रण मे नही।रो के देखिये सुकून मिलता है हसँ के देखे आनन्द मिलता है,भावनाएँ महसूस करने के लिये है दबाने के लिये नही। पर भावनाओ को अपना मालिक नही बनाना ये बस सहायक है आत्मभिव्यक्ति मे। जीवन के संगीत की ये धुने है बिना इनके जीवन नीरस होगा, सूना होगा।
स्वयं को पूर्ण रुप से महसूस करना अभिव्यक्त करना तभी सम्भव है जब विचारो की भीड़ कम हो। इसके लिये ध्यान एक अच्छा माध्यम है। स्वयं से जुड़े स्वयं को पाये यही ईश्वर को पाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है।

MinakshiGupta Cartomancer

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