what is life

 जीवन की विभिन्न परिभाषाएं  अलग अलग परिकल्पनाएं प्रस्तुत करती है। आनंद लेना मस्त रहना जीवन है या संघर्षरत रहकर कुछ प्राप्त करना जीवन है, प्रेम इसका उद्देश्य है या कुछ अलग कर दिखाना। बड़ी अबूझ पहेली है ये जीवन। जीवन को जीने का सबका अलग अलग तरीका है कोई अनुशासन को महत्व देता हुआ कोई मनमानी को।कोई सब प्राप्त करने को जीवन कहता है कोई सर्वस्व लुटाने को।

साहित्य में अनगनित बातें है जो जीवन की सार्थकता पर वाद विवाद प्रस्तुत करती है।पर जीवन बहस का विषय नही अनुभव करने का विषय है। बच्चे से बड़े होने के क्रम में हम यन्त्र वत हो गए हैं ।

बचपन मे हमारी भावनाए व विचार एक अबोधता से बंधे होते है पर सरस् होते है परंतु बड़े हो जाने पर हम इस अबोधता को दे कर ज्ञान खरीद लेते है ,अपनी प्राकृतिक आभा खो कर एक कृत्रिम व्यक्तित्व बनाते है जिस पर धन प्रयास व समय लगाते है । 


क्या सच मुच सहज शांति को गवाकर हम अपना सही विकास करते है?क्या जीवन के प्रति बचपन का प्रेम बड़े होने पर खीज में नही बदल जाता?क्या बहुत कुछ होने पर एक स्थायी खालीपन नही आ जाता।हमे अपने विकास का तरीका बदलना होगा ,जीवन की खूबसूरती के साथ ही चलना होगा। सहजता,सरलता,सरसता,खुशी ,शांति,आनंद को बढ़ाना होगा इनके मोल पर कोई अन्य वस्तु के लोभ से बचना होगा।

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