जीवन :एक प्रश्न?
लहरे समुंदर से अलग नही होती पर ये भी सत्य है समुंदर नही होती।
समुन्द्र अपने आप मे अथाह व विशाल है।अनंत संभावनाओं को छिपाए पर लहर एक पल में मिटती या ये कहे कि एक पल में पुनः नवीन हो जाती है ।कितनी खूबसूरत व ताजगी से भरी लहर अनंत ऊर्जा को छुपाए बनती मिटती रहती है।विज्ञान विश्लेषण करेगा तो समुंदर व लहर को एक ही तत्व बताएगा पर दोनों में सिर्फ एक भिन्नता है वो है ऊर्जा की मात्रा। ऊर्जा की अनंत मात्रा सागर में निहित है जिसकी सीमित अभिव्यक्ति लहर है। तो क्या कहेंगे आप लहर नश्वर है या लहर भी समुंदर की अनंत ऊर्जा का परिवर्तित रूप है।लहर से समुंदर बना या समुंद्र से लहर बनी ।अदभुत प्रश्न है लहरे एक होकर समुंद्र बनाती है या समुंद्र बिखरता है और लहरे बनती है।उत्तर भी अदभुत है लहरे व समुंद्र एक ही है हमारी नजरें व मन ही इनको अलग अलग वर्गीकृत करता है। यानी मन ही रचता है एक को अलग करके अनेक बनाता है। और अनेक को कहता है कि सभी मे वो एक है।विज्ञान भी अणु परमाणु ,इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन तक जा पहुँचा है।आध्यात्म भी एक परम तत्व की खोज में व्यस्त है। ये खोज तब तक अधूरी रहेगी जब तक खोजने वाला ये नही जान लेता है कि वो कौन है?ये खोजने वाला कौन है ।सोचिए आप कौन है और सब कुछ होने पर भी क्या खोज रहे है। जरा शांत हो जाइए ये जीवन की भागदौड़ छोड़कर फिर हो सकता है चंचल लहर को पता चले कि वो स्वयम ही शांत समुंद्र है।और कितना भी लहर ऊँचाई तक चढ़े पर ऊर्जा का रूप बदलना तय है बार बार उसे समुंद्र होंना है बार बार लहर बनकर मचलना है।ये होना है होता रहेगा बस आप नाटक से बाहर हो सकते है जब दर्शक बन जाये दृश्य स्वयम आपकी आंखों में छुप जाएगा।आनन्द साक्षी बनने में है और अकर्ता हो जाने में फिर कुछ होना नही होगा सब स्वयम होगा और कुछ विकल्प नही होगा इस चंचल ऊर्जा के पास वो स्वयम प्रकट कर देगी इस रहस्य को ।
मीनाक्षी गुप्ता
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